1.
राग - शोरठ ताल - चांचर या धीमा
ए डोंगी कैसे लागे पार, पुरानी बही जात मंझधार ।।
ना बांदवां न चप्पू न बल्ली, न कोऊ खेवन-हार ।।
नदिया गहरी, पवन झकोरत,
सूझत आर न पार ।।
कुंवर श्याम बिन कौन उभारे, डूबत भुजा पसार ।।
2.
राग - खमाच ताल -
काहे को देर लगाओ स्वामी, यह पापी टारे न
टरेगो ।।
मैं हूं पतित, तुम पतित उधारन, पण अपनो न भुलाओ
।।
अजामिल तारो, व्याधा तारो, मोहि काहे बिसराओ
।।
कुंवर स्याम शरणागत वत्सल बेड़ो पार लगाओ ।।
3.
राग - जोगिया ताल - तिताला
नेह न कीजे, देह न अपनो, भूलो मत जग संपत
झूठी जागत जैसो सपनो ।।
दारा सुत धन कारण साधन करत करत नित आपनो
कुंवर स्याम भज और विषय तज, राम राम मुख जपनो
।।
4.
राग - हमीर ताल - सूल
वर्णन को समरथ, हरि के गुण सागर
हैं अगाध,
पायो न पार श्रुति शेष व्यास नारद ।।
आगम निगम कहत, को उन पार लहत, अनंत कीर्तिमंत
त्रिभुवन रूप उजागर ।।
अति पवित्र विचित्र रूप ना जाके प्रिय कांलि
उमा के,
जगद अघनाशक कुंवर नट नागर ।।
5.
राग - हमीर ताल - सूल
ताल के काल को प्रमाण, जो जाने द्रुत अन
द्रुत की,
सब पहिचाने ताहि गुणीजन माने।।
हृस्व दीर्घ प्लुत के भेद, सामवेद सों सम
विसम, अनागत विराम ग्रह
अनुमाने ।।
कुंवर श्याम देत तार, गुण समुद्र है
अपार, सब सुर नर मुनि
गायक सकुचाने ।।
6.
राग - हिंडोल ताल - सूल
धरणि मंगल करण, परिपूरण अवतार, जय जगदीश्वर, भक्तन प्रतिपालक
।।
कृपा सिंधु जगवन्दन, सुखकन्दन ऐ, देवकीनन्दन हरि, अरिसुरकुल धालक
।।
कुंवर श्याम श्यामा पद नखेन्दु, कर मम हृदय तिमिर नाशक जय ब्रजेश बालक।।
7.
राग - भोपाली कल्याण ताल - धु्रपद
जयगोविन्द जयगोविन्द, पतितपावन अघनाशन,
शरणागत दीनन प्रतिपालक, हरि परमानन्द ।।
जे जे तुम शरणा भए, तिन के भव त्रास
गए,
अब मेरी बार कहा, देर भर्इ अरि निकन्द ।।
तारक भयहारक उद्धारक है नाम तेरो,
सुमिरन सब दूर होत, त्रिविध ताप दु:ख
द्वन्द ।
कुंवर स्याम अतिदयाल, काटो मम मोह जाल,
दूर करो, दूर करो, दूर करो जगतफन्द ।।
8.
राग - यमन कल्याण ताल - धु्रपद
ब्रहम को भेद, निगर्ुण निराकार, सब कहत श्रुति
वेद, सकुचाए सकुचाए री
।।
निरंजन निर्लेप निर्विकल्प निरीह, वदत मुनि व्यास
समुझाय समुझाय री ।।
जाग्रत और स्वप्न सुषुप्ति से रहित यह, सच्चिदानन्द को
प्रपंच न सुहाय री ।।
वोही सगु रूप धर ब्रज, भए कुंवर श्याम, भार असुरन रही
धरणि अकुलाए री ।।
9.
राग - वागेश्वरी ताल – झपताल
समझ सोच विचार, अरे मन मूरख, मैं तोहे कहत
सुनत,
निश दिन गर्इ हार, देखो देखो एक न
सुनत कैसो गंवार ।।
करे गुमान, काहे अजान धन को, तू रे बड़ो है
निलज लोभी।।
छिन हरषत, छिन तरफत, छिन तरसत, छिन डरपत,
छोड़ अज्ञान, कही मान, कुंवर श्याम
चित्त धार ।।
10.
राग - हमीर या केदार ताल - सूल
माधव मधुसूदन, मदनमोहन मुकुन्द
मुरलीकर, मुकुटधर मनरंजन
मुरारी ।।
पुरूषोत्तम पुराण पुरूष, परमानन्द परशुराम, परेश परमात्मा
पुरारी ।।
अविगत अविनाशी अनादि, अगणित गुण अगाध, अपार अघनाशन
असुरारी ।।
कंवलनयन कंवलापति, किशोरी रमण
कृष्णचन्द्र, कुंवर श्याम
क्लेशहारी ।।
11. राग - कान्हड़ा ताल
- तिताला
सुर नर मुनि विधाधर पावे न पार।।
नाद - समुद्र अगाध, कैसे तरिए, नहीं नांव और खेवटिया, पार उतारन हार ।।
सब तरिवे की आस लगावें, अहंकार करि थाह न
पावें,
अगम अगोचर अकथनीय स्वर, हृस्व दीर्घ
प्लुत स्वरित अगार ।।
स्वर र्इश्वर ताल शकित, है अनंत को पावे अंत,
कुंवर श्याम चरण शरण होय तब लहे किनार ।।
12.
राग - केदार धु्रपद
चित्रकूट गिरिपवित्र जहां चरित्र करत राम,
सीता लक्ष्मण सह, बन विहरत कर धनुष
बाण ।।
असुरन को त्रास देत, मुनि गण मन हर्ष
हेत,
प्रति आश्रम करत गवन, करूणायन
निरभिमान।।
जहां तहां दरस परस, करत फिरत दंडकवन, कोमलपद कठिन भूमि,
छूटे कहो कैसे बान ।।
अवध के नरेस राउ दसरथ के कुंवर राम,
धन्य धन्य भक्तन
को, रीझ देत अभयदान
।।
13.
राग - विहाग ताल - तिताला
इतने दिन कहत सुनत योंही बीते।।
कहत वो हाल न करत पल , एक कछू करत तोही
मन चीते । ।
ममता मोह मान मद तृष णा घटत न साधन कीते ।
मानुष जन्म भयो बहु पुण्यन, अब चले दोऊ कर
रीते । ।
रे मन मान कर्यो हठ जिन कर, कितने र्इ जन्म
बीतें । ।
सब तज कुंवर श्याम भज, मूरख जे हरि भजे
तेर्इ जीते ।।
14.
राग - ताल-
प्यारे बिहारी मुरली कर धारी दीजे दर्श मैं शरण हों
तिहारी ।।
मैं चितवत दश दिशि तुम निरखत नाहिं , अैसे कठोर क्यों
भए बनवारी।।
अभय पद दान दीजे कृपा निधि, विलम नहीं कीजे
अब भक्त सुखकारी ।।
कुंवर श्याम नित झगरत हो हमसों, हमरी वार अब तुम छिपवत क्यों खरारी ।।
15.
राग - धानी ताल - तिताल
ए मन वारी राधा प्यारी सुध लीजे हमारी ।।
अभय दान दाता विश्वंभर, भक्तन हेत धरयो
गिरिवर कर ,
जै मुकुन्द माधव मधुसूदन, अशरण शरण दीन
हितकारी ।।
कुंवर श्याम विनती सुन लीजे, अरजी यह मरजी सो
कीजे ,
अनपायनी भकित मोहिं दीजे, कृपा सिंधु अघ
दमन मुरारी ।।
16.
राग - हिंडोल ताल - तिताला
अशरण शरण दीनबंधु अब लीजे सुध मेरी
कर जोरे विनती करत आयो शरण तिहारी ।।
भव सागर अगाध जल बहयो जात ।।
पतित पावन नैक चितवो मेरी ओर,
कुंवर श्याम बार बार टेरत हूं
जल जिमि गज असुरारी ।|
17. राग - संदूरा ताल
- धम्माल
देखो कौन तुम कौन हम कौन, जग सबहि दीखत
धुंध को पसारो ।।
कहा महल और कहा धाम, कहा नगर और कहा
गाम ,
कहा रूप कहा नाम,
मन मन में विचारो ।।
सत्य निर्मल कुंवर श्याम नाम, रट हिये ध्यान धर नर,
और है सब रैन सुपनो अैसी भूल बिसारो ।।
18.
राग - हमीर ताल - धु्रपद
नमो अंजनी कुमार लव चरण सरोज बार बार
महिमा नहीं जानत कवि कहत बल अपार
।।
नमो अंजनी कुमार
राम दूत पवन पूत जनकसुता मन रंजन
भक्तन भय रंजन हो कपीश दु:ख निवार
।।
लंका दहन हनुमान झारो रावण गुमान
रघुनन्दन काज हरे सकल प्रबल असुर
भार ।।
गुण अनन्त बुद्धिवन्त करूणानिधि कृपा
करो
कुंवर श्याम दास को भवसिन्धु से उबार
।।
19.
राग - गौरी
नमो नमो जय जय जयति श्रीनारायण मिश्र
जाके नाम प्रतापते दूर होत दुख तिश्र ।।
जै श्री नारायण मिश्र जाने दूर कीथे दुख तिश्र
जै जै वृंदाविपन विलासी
जै श्री किशोरी रमण उपासी
जै जै गौर स्र्यम अनुरागी
जै जै अनुसुखन वैरागी
जै जै नवल वंस अवतंस
जै जै रसिकन मध्य प्रशंस
जै श्री कीरत यह जस गायो
जै जै निज निकुंज सुख पायो ।।
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