1.
राग - पीलू ताल
- बरवा
पनियां भरन कैसे जाऊं दई री,
अकथ कहानी नहीं जात करी री ||
भरो गयी सखी में दधि बेचन,
पकर स्याम मग लाज लई री ||
कुंवर स्याम सौं डरत मन पल पल,
लाज गई जग हाँसी भई री ||
2.
राग - सुधरर्इ कान्हड़ा ताल - त्रिताल
लंगरार्इ अब छांड़ो मोहन मोसे ।
आवत जात मग में नित प्रति करत छेर
हम सों तुम बेर बेर,
देख हंसें ब्रज की नागर सगरी,
हम बार बार बिनती करत तोसे ।।
मैं गूजर हूं बरसाने की बांह पकड़ नहीं छोडूंगी,
सुन बाबा नंद के नटखट जिन ठकुरार्इ के रहो भरोसे ।।
3.
राग - पूरिया ताल - त्रिताल
अब मैं कैसे निकसूं मगवा, घट फोड़ देत नटखट,
ठाड़ो ही रहत नित प्रति पनघट ।।
मेरे संग की जाने देत है, मोहि अचानक घेरत ।
औरन कुंवर स्याम हंस हंस मुस्कावत ठाड़ो ही रहत नट ।।
4.
राग - परज ताल - त्रिताल
निपट निडर दधि की मटकी पटकी, बीच डगर कर पकर मोर,
मुरकार्इ चुरियां सब कर की मोसे ऐसी हट की ।।
तक तक पिचकारी रंग डारे, भर गुलाल मुख कुमकुम मारे,
तरट न टारे................. झपटत,
डरत न डर, बुरी बान वा, कुंवर श्याम नागर नट की ।।
5.
राग - पीलू ताल – त्रिताल
पनियां भरन कैसे जाऊं ।।
डगर करत ऊधम नटखट, न जाऊं तो सास लरत है,
द्वारे खड़ी सकुचाऊं ।।
रूप लालची नन्द डिठौनौ, का विध रूप छिपाऊं,
कुंवर स्याम मग संग लगि नैनन रोग लगाऊं ।।
6.
राग - तिलक कामोद ताल - त्रितंल
छीन लर्इ गारी दर्इ, बीच डगर मग रोकत, देखो दधि की मटकी मोरी ।
सगरी चुनर की किनारी नर्इ फारी उन, और कन्हार्इ मेरी इंडवी
चुरार्इ सुन,
कुंवर स्याम की ढिठार्इ मोहे न सुहार्इ, करत लरार्इ नित प्रति
बनवारी लो री ।।
7.
राग - तिलक कामोद ताल - त्रिताल
किन लर्इ, किन लर्इ वीर, मेरी इंडवी,
मैं अब ही पनघट धरी ।।
अब ही मंगार्इ, नर्इ सिर धर आर्इ, धारी कहां छिपार्इ, बृजनारी इंडवी हमारी ।
सब हम जानी तुमरी ढिठार्इ, तुम कुंवर स्याम कै ले कर
दर्इ ।।
8.
राग - शोरठ मल्हार ताल - त्रिताल
कर न गहो, कर न गहो,
रे कर न गहो जू न डरत नन्द
लाल बाल,
नित रोकत टोकत नटखट निडर अनारी ।।
चुरियां कर कर करकन लागीं, डगमग पग, हिय धरकत रे ।
कुंवर स्याम तुम हो रस लम्पट, हम जानी तुमरे मन की बनवारी
।।
9.
राग - सोरठ मल्हार ताल - दादरा
बरज रही, बरज रही री तोहे बरज रही रे, जिन मग अटके,
सुन सुन नटखट कुंवर स्याम, बिनती करत सब नारी ।।
चलो तो कहूंगी तेरी मैया से, कैसी कर नित हम संग रार,
लोक लाज समझो नंद वारे, तुम जीते हम हारी ।।
10.
राग - हम्मीर ताल - आड़ा चौताला
मोरी कलार्इ डगर चलत मुरकार्इ |
न माने री कन्हार्इ, आवत जावत,
बार बार कर ढिठार्इ ।।
कुंवर श्याम हटको री हठीलो, अति गरवीलो
काहू की न माने,
ए दर्इ दधि की मटकी ढरकार्इ ।।
11.
राग - सिंध काफी ताल-आड़ा चौताला
हटो जिन बिहारी मेरा कर पकरो ।
मैं गारी दूंगी, मोसे बीच डगर, करत छेर, देखत गाम सगरो ।।
तुम न भए काहू के मीत, कर प्रीत नित छाड़त हो ।
ये नर्इ रीत कुंवर श्याम, मोहि न सुहात नित नित को
झगरो ।।
12.
राग - काफी ताल - त्रिताल
संग न सहेली, जान अकेली,
मोहि मग घेरी ए सांवरिया ।
मोहि सों देखो नित निडर करत ठठोरी, चुरियां तोंरी,
बैंया मोड़ी बरजोरी मटकी मोरी ।।
औगुन वाके कोर्इ न लखत, मोहि को सब लरत है,
ए मैं कहा री करूं, कैसे निकसूं, अब ना सहूं मैं मैया की
ढिठार्इ,
कहा कुंवर कन्हार्इ नटखट की मैं चेरी ।।
13.
राग - जय जयवन्ती ताल झपताल
अचरा पकर लेत, झगरो करत नित, डरत न काहू के डर, कैसे जल भरिए ।।
कर झटक, घट पटक, गारी वो देत री, नन्द की छोना, तासौ कहो जैसे लरिए।।
ऐसो छैल रोकत खड़ो गैल री, एक एक डग मग डरत डरत धरिए ।
इत लरत सास, उत करत उपहास बृज, तेरी सौं न माने कुंवर श्याम कहा करिए।।
14.
राग - भैरवी ताल - त्रिताल
जारे जारे हट जिनकर रे लंगर मैं तो तोहि जानूं,
काहे करत लरार्इ ।
हम सों लो मांगत दधि को दान, नित करत ढिठार्इ,
कुंवर कान्ह चल हट रे मोहि न सुहार्इ ।।
15.
राग - छाया ताल - त्रिताल
मेरी नर्इ चुरियां करकार्इ बीच डगर ढीठ लंगर, मैं आवत गागर
सिरधर बैयां झटक ।।
बरजत बरजत एक न मानी, सिर से गागर पटक
लुढ़ानी,
कुंवर श्याम ऐसो निडर ए री कर सों पकर कर
मुरकार्इ कलार्इ ।।
16.
राग - सोहनी परज ताल - एक ताल
मेरी गैल गैल लागो छैल डोले री, न माने मेरी कुच मसकत,
बांह गहत और घूंघट खोले ।।
कुंवर श्याम करत चाहत, मोसे नेह हा हा खात,
जाने न प्रेम को नेम, अनारी अमृत में विष घोले ।।
17.
राग - धानी ताल - त्रिताल
मोसे मग चलत करत कान्ह झगरो,
मांगे जीवनदान ठाडो रोके डगरौ ।।
बैंया गहत कोर्इ नहीं छुड़ावत, कुंवर श्याम को
सैन चलावत।
कैसी नटखट नगरो सगरो ।।
18.
राग - देसी कान्हड़ा ताल - त्रिताल
ले गयो जल भरत इंडवी वो नटखट, कैसे घर जाऊं धर
सीस घट नीर को ।।
तुम खड़ी हंसत कोर्इ जतन ना करत री, देख चितवन कहा
रही पर पीर को ।।
कबहंू तो मोहि मग मिलि है कुंवर श्याम,
छीन लूूं मुरलिया, करूं बिन तीर को
।।
19.
राग - खम्माज ताल - त्रिताल
ए मेरी गगरिया जी न छुओ सांवरियां, तोसे बार-बार कहत
गर्इ हार ।।
गोकुल गांव की रीत नर्इ कछु, कहन न आवे जिय
घबरावे,
कुंवर श्याम मोहि मग चलत छेड़ नित करत रार ।।
20.
राग - भूपाली ताल - त्रिताल
गोरस के मिस जो रस चाहत, सो रस जोग न तुम
नंदवारे ।।
नित प्रति आवत हम दधि बेचन, तुम हम सों रार
करत कुंवर श्याम,
बरजत हम हारी ए दुलारी ।।
21.
राग – कान्हरा
ताल - पंचम सवारी
चल हट जा रे, मोसे काहे मग में करत
ढिठार्इ, निपट निडर नटखट
।।
मैं राखत हूूं तुमरी बड़ार्इ, तुम गारी देत
अटपट ।।
22.
राग – नट ताल - झपताल
लागौ कैसौ दांव री, सजनी मोहन मोहि
मग घेरी रे ।।
बार कर मुस्कात, इतरात, हा हा खात, कुंवर श्याम अब
तो भर्इ सखि मेरी रे
।।
23.
राग - तिलक कामोद ताल - तिताला
तेरी री कान्ह, निपट निडर नित
मोसे करत बराजोरी ।
प्रात हम दधि बेचन जात सब, मिल बीच डगर लेत
लाज,
और सिर की गागर तोरी ।।
बांह झटक, नटखट करकार्इ
चोली और लंगर करत मोसे कैसे ठठोली,
मेरे री पंैडे परोरी कुंवर श्याम लो री गोरी ।।
24.
राग - तिलंग ताल - तिताला
कहूं तेरी ढिठार्इ निपट निडर कासे ।।
छिप छिप जाके संग हंस बतियां करत, प्रीत करो अब
वासे ।।
सौतन संग नित चुगली करत हो, एक की लाख बनाय
कहत हो,
कुंवर कान्ह तोरी रीत नर्इ, परतीत गर्इ अब या
से ।।
25.
राग - पूरिया ताल - तिताला
ए बलि बलि जाऊं तोेरे, ए हो सांवरिया, मग भटकावों
गोकुल गांव की गैल भूल गर्इ ।।
आज नर्इ दधि बेचन निकसी, मानगढ़ी ते कुंवर
कन्हार्इ
भर्इ अबेर लड़ेगी, नणदिया डर लागे
मन मोरे ।।
26.
राग - काफी ताल - तिताला
मोसे प्यारे हट रार न कर ।।
बीच डगर हंसेगी लुगार्इ ब्रज की,
दे दे तारी मैं तोसे घरी घरी, कहि हारी निपट
निडर ।।
वसत तिहारे गांव, कुंवर श्याम जिन
हठ करिए, बिनती करत हौं
तिहारी,
देखो धूम मची सगरे नगर ।।
27.
राग - भूपाली ताल - तिताला
सगरे नगर धूम मची है, एक छोरा ठारो
घाटबाट, रोकत टोकत,
न एक सुनत, आवत जात दधि लूटत
नित नटखट ।।
एरी सखि किन मोहि बताओ, कौन गाम कहा कहा
नाम कहावे,
कुंवर श्याम सखि हो गहि लावौ पकर कान कर गहि चटपट
।।
28.
राग - सोहनी ताल-
लागो री कान्ह संग नित डोलै, लाज की मारी न
काहू संग कहूं री बात ।।
कुंवर स्याम नित ठठोरी करत है, निडर निलज हंस
हंस घूंघट खोलै ।।
29.
राग - भैरवी ताल - त्रिताला
मोरी कलार्इ जिन छुओ मैं दूंगी गारी, बीच डगर बरजोरी
करत अनारी ।।
बार-बार मोसे कर ढिठार्इ, कुंवर कन्हार्इ
भयो ब्रज में निडर, नित कहत सुनत
हम हारी, निलज बनवारी ।।
30.
राग - माल सिरी ताल - आड़ा चौताला
कैसे जाऊं पनघट ए री बैरनियां
बीच मग रोके ठाढ़ो नन्द को कानियां ।।
जाही चितवन वा मन हर लेत, जानूं जानूूं
यह कहा भेद जानी, जाकी चितवन है बाकी ठगनियां
।।
31.
राग - सिंध काफी ताल - तिताल
मोसे डगर करत छेर काहे को, जाने दे घर लंगर
भर्इ जात अबेर ।।
मैं जानी जानी पहचानी सब तुमरी घात, बात बात क्यों
इतरात,
निपट निडर कुंवर श्याम, न काहू की करत
लाज,
बीच डगर हारी अरत घेर ।।
32.
राग - वागेश्वरी ताल - तिताला
कैसी तू मोसे करत छेर बेर बेर, पनघट पै नित मग
घेर घेर ।।
कहयो जी मान, दे घर जान कुंवर
कान्ह वेग मोहि,
नाहीं
तो मैं अब ही कर पकर, एक पल में
निकासूंगी तेरी हेर फेर ।।
33.
राग - सिंधु काफी ताल -
देखो मैको
गारी दीनी, कैसी कीनी कन्हार्इ,
तोड़ी चुरियां सगरी करकी, मोड़ी मोरी
कलार्इ रे ।।
ऐसो निरदर्इ नटखट, कुंवरकान्ह काहू
की न माने,
कैसो निपट निडर, मग चलत मोरी लाज
गंवार्इ रे ।।
34.
राग - बागेश्वरी ताल - एकताल
भरन पनघट आज अकेली,
मैं गर्इ री प्यारी,
मदनमोहन मग ऐसी करत छेर,
देखो देखो इडवी मेरी झटक, मटकी फोरी ।।
बरजो न माने, करत ढिठार्इ हमसे
लो री बड़ो है निडर,
गोरी मग झगरत, कर पकरत, हंस मटकत,
जिया हर खटकत, मांगत दान, कुंवरकान्ह क्या
कहूं दर्इ ।।
35.
ठुमरी भैरवी ताल
मोहे छैरा ने गैल जाने दे, तोरी विनती करती हारी,
हंसेगी लुगार्इ ब्रज की दे दे तारी, छैल जान दे ।।
कर न चलावो जावो मन न लुभावो,
सुन चितवन मेरी
छब न चुरावो,
तुम कुंवर श्याम हम जानी, तुम हो अनारी जान
दे ।।
36.
राग - विहाग ताल - तिताला
कर सों कर सों पकर मुरकार्इ बहियां मोरी रे
नर्इ सगरी चुरियां तोरी रे ।।
लंगर ढीट डगर बीच, पनघट के निकट
ठाडो र्इ रहत
कुंवर श्याम आवत जात
मोहि सों नित कर ठठोरी रे ।।
37.
राग - काफी ताल - तिताला
मैं कैसे समझाऊ मेरी माने न सांवरिया,
नित लिए लकुट ठारो रहत मग, मांगे
जोबन दान है रंगीलो आप बनत राज कुंवर,
हमकों कहत गांवरिया ।।
माखन चोरी करत अब भए हैं साह,
मांगे न कर काहू को डर न तोहि कुंवर श्याम ।।
38.
राग - पट ताल -
छोरा कारो ननदियां, मैं कैसे जाडं
पनियां भरन , मग ठाडो ।।
आवत जात पकरत हाथ, वो करत लाज न
काहू की मानत।
कर मरोरत चुरियां तोरत, काहू सो टरत न
टारो ।।
कुंवर श्याम है नाम ताको, रंग में वोरत
चाहि जाको,
सगरे फागुन राज वाको, निडर नंद दुलारो
।।
39.
राग - पीलू ताल - दादरा
तोहे न रोकत याहि न टोकत, मोही को छेरत
माही ।
तारी दै दै नाम मेरो टेरत है घरजार्इ ।।
देखों देखोरी कैसो लाग्यो गोहन, मोहि मग
निकसन देत न मोहन ।
वासे न खेलत यासे न बोलत, मो को ही घेरत
आर्इ ।।
गलिन गलिन करत रार, रंग भर पिचकारी
डार ।
मलत लाल मुख गुलाल अैसो कुंवर कन्हार्इ ।।
40.
राग - जौनपुरी ताल - झपताल
यै कैसो लागो फिरे गोहन, मेरे री मोहन नित
मार्इ ।।
वड़ो ही चक चाल वीर, नंदलाल कहयो न
जार्इ ।।
कहो जैसे जाऊं जल भरन घर की दधि बेचन ।
गारी बकत ठाडो पनघट मेरो मुख जोहन । ।
रंग की भर मारत पिचकारी, न देखत नर्इ सारी
।
निडर बनवारी अनारी मन को दोहन ।।
मटकी सिर पटक सारी जल में भिजोय दर्इ ।
कुंवर श्याम है निर्लज लगो कुच टोहन ।।
41.
राग - सिंध काफी ताल - तिताला
काहे को सहेली अकेली जात पनघट,
बीच डगर लेत पत ठाडो नटखट।।
खेलवों न जानत खिलारी है अनारी
गारी देत निहारी अटपट ।।
कुंवर श्याम है निडर तो को तो है डर,
सास नणद नित रार करत ।
है तू कुल नार वो बेक ट ।।
42.
राग - घनाश्री ताल - तिताला
न जावो री पनिया भरन कोर्इ आज ।।
मग ठाडी झगर लंगर, लेत पत देत अैसो
निलज ,
बकत इतगारी, छिप छिप दर्इ घात
तकत , घूंघट पट खोल मल
गुलाल,
मन चाही करत मानो वाही को है राज ।।
होरी कही खेलत वाराजोरी करत, काहूं सो ना
डरत छीना झपटी करत,
कुंवर श्याम मेरो गह यो री चीर
वापै डार नीर मै तो आर्इ री आज ।।
43.
राग - पीलू ताल - आडा
नित मोसे झगरो करत मग, कान्ह ठाडो देखो
तो ,
अब मैं कैसे जाऊं पनियां भरन, लो मेरी वीर ।।
वार वार कहि समुझाय हारी, ठाडो ठाडो
हंसत न लजत मुरारी,
अपनी टांग अब उधरत आवत,
आज कुंवर श्याम भयो बृज मैं अति ढाणो ।।
44.
राग - भीम पलासी ताल - तीन
कौन गांव मैं वास तिहारौ ।
नित प्रति आवत गलिन हमारी दधि बेचत, कहा मन उरझावत ,
यहौ लागत कछु कर रही री हमारौ ।।
सगरे दधि को मोल बताओ, खाटी मीठी नैक
चखाओ,
बिन कर लीने देऊं कुंवर श्याम अब टरत न टारो ।।
45.
राग - माल गौरी ताल -
सुधरार्इ अब कहा करत लाडले, हंस हंस हम जान
लर्इ तोरी ढिठार्इ ।।
बैन कहयो दधि कछु नहीं लीनो,
ऐसो मतवारो मोहि छेर करन को बुलार्इ,
भर्इ अवेर कहो कैसे जाऊं, डर लागत है देहु मोहि घर पहुंचावहू ।।
कछु तो लोउ सिर बोझ घटाओ ,
दधि अति मीठी मेरी, तेरी सों कुंवर
कन्हार्इ ।।
46.
राग - मालकौंस ताल - झप
मोरी मटकि पटक कर झटक गयो आज सांवरो । ।
पनघट पै जल भरत कैसे, उठाऊं घट दुखत
कलार्इ ,
तू ही उठाय धर सिर पै गागरो ।।
कैसे अब बृज में रहिवो बने, आली वैर करन लागो
मोसे ,
कुंवर श्याम कौन सहे याकी इतनी ढिठार्इ,
काहू की न माने बडे़ घर को लाडलो ।।
47.
राग - भैरवी ताल -
आवत कान्ह मोरे घर ठठोरी करन, अब मैं कैसे वाहि
बरजोरी आली
जिया सकुचात न कछु कहो जात ।।
कुंवर श्याम मोसे अैसो नेह करत, पनघट पे आन मेरी मटकी भरत
वाकी न नेह मोसे छाडो री जात,
देख देख मोसे नणद बलखात ।।
48.
राग - जै जैबन्ती ताल - तिताल
मेरी गगरिया नर्इ फोर दर्इ श्याम ने ।
देखो आली कैसे जाऊं अपने घर आज, होवेगी लरार्इ
ननदिया से भोर ।।
कैसी करूं पनघट आये बिन न बनात, नित आवत
जात अैसो जियरा डरत,
कुंवर श्याम कहीं मग न मिल जाय, करेगो ठठोरी दर्इ
चित को चोर ।।
49.
राग - ललित ताल - तिताल
ये मोसे तुम कैसो छल कीनो रे ।।
सांवरे बातन लगा मेरो मन सब गोरस छीनो रे ।।
जाने न दूंगी दधि को लिये बिन मोल ,
लरेगी नणदिया मारेगी लाखन बोल, और कुंवर श्याम
मन हर लीनो रे ।।
50.
राग - भैरवी ताल - दादरा
तोहे गारी दूंगी रे ।।
बिहारी मैं अपनी दधि बेचत फिरत ,
तू मोसे क्यों ठिठोरी करत ।।
नैन मिलावत सैन चलावत, लाज काहू की
तोहे न आवत,
कुंवर श्याम तुम मानो जी मानो
इन बातन सों जिया जरत ।।
51.
राग - भैरवी ताल - तिताला
बरजो री मानै री कान्ह ।।
कैसो लंगर है मेरी दैयया, कहत वचन बरजोरी,
रंग की भर मारी पिचकारी तान ।।
कहो तो कैसे जल भरन पनघट जाऊं सजनी,
रजनी दिन गलियन गलियन, धूम मचावे अ ैसो
री चपल,
कुंवर श्याम मै तो लाजन मरी जात,
ये न समझे री लाभ हान ।।
52.
राग - भोपाली ताल
- झपताल
सखी बाट मैं आज, नन्द लाल मोहि
पकर ,
अंगिया दर्इ फार और चूनर विगारी रंग डार रंग
डार ।।
मोही सों नित छेर करत क्यों अवेर करत पैआ
परत कर जोरत कुंवर श्याम भयो गरहार गरहार
53.
ताल - शोरठ ताल - दादरा
आज श्याम बाट में चलत, लो मोहि गारी
देर्इ ।
और कहा कहूं सखी तोसे, सुन वाकी ढिठार्इ
चूनर मेरी रंग में बोर बोर फारी नर्इ ।।
मै तो नर्इ अवहि आर्इ या नगर मैं, कहा री जानूूं
यहां की रीत, और प्रीत दर्इ
कुंवर श्याम मग
बीच मुख लिये चूम लाज सारी गर्इ ।।
54.
राग - विभास ताल - झुमरा
नित मग करत मोसे रार,
सुन जसुधा के छोरा, डारत रंग तेरो मन
,
न भरत निपट निडर गंवार ।।
तोहे ना लागत डर, सगरै दिन धूम
मचावत ,
घेरत गलियन कुंवर श्याम, निशंक संग लिये
गंवार अड़त फिर लवार ।।
55.
राग - बिहाग ताल - तिताल
सगरे नगर मै धूम मचार्इ, नंद लाल जसुधा के
लाल ने ।।
निकसन देत न मग दधि बेचन, चरचा करें सब बृज
की लुगार्इ ।
काहू की मटकी फोर देत,
अंग लिपटत चुरिया तोर देत,
निलज निलज जित तित बकत,
घात तकत , कछु कही न जार्इ
।।
जैसे र्इ संग ग्वार नटखट, लिये ढोल मृदंग
मुचंग बजावत, दौरत झपटत रंग
वर्षावत ,
गलियन गलियन कुंवर कन्हार्इ ।।
56.
राग - सुधरर्इ ताल - तिताला
परे हट परे हट जारे जा जारे जा जारे, नंद के
खेलन जाने यो ही झगरो ठाने ·।।
हम जानत हैं वृज में तेरो र्इ राज ,
कुंवर श्याम यासे निडर करत सबसे वराजोरी,
रसिया बात न माने काहू ना पहचाने ।।
57.
राग - संदूरा ताल - ध्रुपद (सूल की चलन)
अंग लिपटत मोरे । डगर चलत नयो भयो,
वृज तुही तो खिलारी रे, निडर दौर दौर
झपटत ।।
58.
राग - मुलतानी ताल- धम्माल
काहे को झगरत मोसे, मगडग चलत देत न
डग लंगर ।।
तुम ऐसी अनरीत कहा ते, सीखे हो निपट
निटखट ।
ले चलूं तोहे नन्द घर, न दो ऊ पकर कर
जकर हर ।।
कुवंर स्याम तिहारी बातन, रोष भरत पै मन
डरत है ,
नैक कारण नेह टूटे , रहत हम तुम एक
नगर ।।
|