1.
राग - गारा खमाज ताल - कहरवा
बजार्इ कहीं बांसुरी बलवीर
या वंशी में जादू भरो है, छाड़ो मुनिजन धीर ।
कल न परत दिन रैन एक पल, कठिन विरह की धीर ।।
चलो सखि दधि बेचनमिस, ठाड़ो जमुना तीर ।
कुंवर श्याम बिन अति व्याकुल मन, जैसे मीन बिन नीर ।।
2.
राग - खमाच मल्हार ताल - त्रितंल
ये कैसी तिहारी है प्यारी बिहारी, बांसुरिया ने मेरो तन मन
लियो छीन ।
कल न परत है निशि दिन घरी घरी पल पल छिन छिन, जादू सो कुछ कीन ।।
अधर धर मधुर मुरली नैक बजाओ, काहि मन ललचाओ,
कुंवर श्याम कबहूं तो आओ,
छबि दिखलाओ, तरफ तरफ गर्इ ज्यों जल बिन मीन ।।
3.
राग - गौड़ ताल - त्रिताल
प्यारे री मोहन बंसियां बजार्इ, मेरे मन भार्इ, सो वाके बिन देखे,
तरफ तरफ ए वीर रतियां गंवार्इ ।।
चलो री सखी मोहि नैक मिलाओ, कुंवर श्याम की
बांसियां सुनाआें,
काहे को इतनी देर लगाओं, मेरे हिया में
जिया न समार्इ ।।
4.
राग - कान्हरा ताल -
कैसी मधुर धुन मुरली बजार्इ रे ।।
प्यारे मनमोहन नट नागर, धर अधर, मोह लई सब बृज की
नार ।।
कौन राग और कौन ताल, कछु भेद न पावत,
ऐ री सखी मन छीन लीन्ह, है कुंवर श्याम
कैसी लाड़ लड़ार्इ ।।
5.
राग - कान्हरा ताल - धु्रपद
तेरी छब निरखत अनंग प्रिया लजित होत,
दर्शन को आवत नित, सुवनिता चढ़ विमान
।।
भ्रकुटि बंक, इन्द्रधनुष मान
तज समान भयो,
वेणी तव देखत, सब नागन के गए
मान ।।
लोचन भवमोचन दोउ दृषिट परे जब ते,
मृग मीन भए दीन
तुम ऐसे सर मारे तान ।।
रोष त्याग उठ भामिनि, चलो क्यों न
प्यारे पास,
कर अधर बजावत, मधुर वेणु कुुंवर
कान्ह ।।
6.
राग - मल्हार ताल - तिताल
ये कैसी बिहारी तिहारी लो प्यारी, बंसियां ने मेरो
तनमन लियो छीन ।।
कल न परत है निश दिन धरी री,
पल पल छिन छिन मोपे टोना सा कुछ कीन ।।
अधर धर मुरली बजाओ, काहे मन ललचाओ
कुंवर श्याम।।
7.
राग - काफी ताल -
आज मेरो मन लियो छीन ।।
वेणुधर अधर श्याम, मुसि का के लर्इ,
तान एक हिय लागो काम बान, सिर से मटकी
गिर परी, मोहीं तन की कछु
सुध न रही।।
कहा कहौं अपनी बीती मन की, ए री सखी
कुंवर श्याम जादू सो कीन ।।
8.
राग - तिलंग ताल - तिताला
सखि छबि निरख मेरो, मन गयो री हाथ से,
मैं गर्इ री पनघट जल भरन, बन ते धेनु
चराय मग आवत भयो री ।।
मोर मुकुट की झुकन, कुंडल लसन मृदु
मुसिकन,
वाकी बांकी चितवन बिनु दामन,
कैंसो चित चेरो कियो री ।।
मोहिं न खबर हैं कहां दिन कहां रैन,
बावरी सी फिरत रहत हौं ना हीं चैन,
कुंवर श्याम की मुरलिया हिय बसी री, मैं न
जानूं ये कैसी जादू नयी री ।।
9.
राग - बहार ताल - झपताल या सूल
ये कैसी वनमाली मुरली बनार्इ ।।
लियो मन छीन किया दीन बृज आर्इ ।।
तन लियो मन लियो भर्इ आधीन सब,
और लर्इ लाज अैसो पढ़ार्इ ।।
वांस की पोरी कुल कान तोरी,
गोरी लाडली लाड़ अैसी चढ़ार्इ ।।
कुंवर श्याम से छिन होत न न्यारी
रैन दिन राखत है उर सो लिपटार्इ ।।
10.
राग - शोरठ ताल - झपताल
फूलन बीनत श्री वृषभानु कुमारी संग लिए बृजनारी
।।
वरण वरण के भूषण सोहें, जिनकी नवरंग सोहे
साड़ी ।|
हंसत हंसावत हिल मिल, गीतन गावत सब ही
वयस वयस देखत ठाडी ।।
11.
राग - हमीर ताल - एकताल
नाजत नट नागर, नव नागरिवर , संग लिए वृंदावन
सघन कुंज बांसुरी मधुर बजाय ।।
पगपटकन नैन चलन, भौंह मटकन करझटकन
,
मृदु मसिकन अर्थ भाव, हंस बताय ।।
उधटगति प्रघटति दुति, थोंथरंग थोंथरंग
घुम घुम घुम ,
धिरर कत तिगदा दिग दिग, गति कदा दिग दिग
तग
धिलांतक, थेर्इ तगधिलांतक , थोर्इ तग धिलांतक
थेर्इ । ।
शशि उडगण गति थकित भर्इ, षटमास की रैन रही
, कुंवर
श्याम ताननसो, बृज भामिनि लर्इ
रिझाय ।।
12.
राग - मल्हार गौड ताल - झप
नाचत बिहारी संग बृजनारी शरद रैन उजियारी ।।
कहा कहूंरी कछु कहत न आवे, ज ैसी नटनागरि
छबिधारी ।।
श्वेत वसन भूषण श्वेत, पहर मुकुट
चंदि्रका और
मोती माल स्वेत, सुमन मृदु हंसन , दसन दुति शोभित
कुंवर श्याम राधा प्यारी ।।
13.
राग - तिलंग ताल - तिताला
करत सखी मदन मोहन रास ।।
भामिनी लिए संग सहस बृज बंधु,
जमुना निकट वृन्दावन मन अति हुलास ।।
उरपट पग परत बाजत, घननन नुपुर नाचत
गति सों ,
सम बिन अतिति अनाघात ताल, ता थेर्इ ता ता
थेर्इ थेर्इ था ता,
थेर्इ थेर्इ था और कुंवर श्याम मृदु करत हास ।।
14.
राग - काफी पूर्वी ताल - तिताला
बिहारी नाचत संग लिये राधा प्यारी ।।
सखी री वंशीवट के निकट, वेणु बजार्इ सुन
सुन उठ धार्इ ,
मन हरयो मुरारी ।।
मधुर मधुर गति भरत हरत मन गावे,
सखी ए मन कहा कहूं कहा कहूं,
वाकी सुधरार्इ वरणत त्रिपुरारी ।।
ता थेर्इ थेर्इ ता थेर्इ थेर्इ ता थेर्इ,
कहत मन उरझावत मुरली बजावत ,
राग किदारो हमीर और खम्माज
कुंवर श्याम की मैं बलिहारी ।।
15.
राग - स्याहाना ताल - आडा चौताला
करत रास राकेश उदय देखत नंद नंदन री ।।
नटवर घर भेष काच्छे काछिनी नृत्यति जग वंदन री
।।
धर अधर मधुर सुर मुरली, सरस बजावत नव ताल लेत,
ता थेर्इ ता थेर्इ ता ता थेर्इ ता ता,
थेर्इ मदन मान खंडटी ।।
कुंवर श्याम श्यामा दोउ, कर जोरे शोभित
मंडल मधि
पंकज विच पराग जिमि, निरखत दूर करत
दुख द्वंदनटी
16.
राग - सूहा ताल - तिताला
नाचत मदन मोहन, मुरली धर श्री
वृन्दावन , संग लिये बृजनारी,
सब मिल गावत मुख सों, ता थेर्इ था ता
थेर्इ था ता ,
थेर्इ था गहि गहि कर ।।
झनन झनन नूपूर धुन राजत, और किंकिणि
गाजत कटि राजत,
मृदु मुसिकावत, पि ्रयासों
प्यारी प्यारी सों प्रियवर ।।
कधिट कधिट किडधिकिट धिकिट धिकिट, ताल,
मृदंग बजावत मृदुल सुहावत, और नाचत द्रंगदा
द्रंगदा
थेर्इ था किट कहि कहि हर , कुंवर श्याम
गोपिन
बीच सोहत, कनिक जटित जिमि
नील मणी ,
निरख निरख निज तन न संभारत, वृज वनिता जडजीव
चराचर ।।
17.
राग - केदारा ताल - धम्माल
शरद की निश विमल वन उदय देख चन्द्र,
कृष्ण चन्द्र अनंग मन मोहिनी जगार्इ री ।।
कानन धुन परी जाय, वृज वनिता चली
धाय ,
छोड़ लोक
लाज गोविद ढिं ग आर्इ री ।।
कहो कुशल गांव की, क्यो ं आर्इ निश
धम्र्म त्याग ,
जाओ पति करौ सेवा, मोहन समुझार्इ री
गर्इ आस भरी त्रास, कुंवर श्याम के
वैन बोली ,
हम आर्इ हैं वेणु की बलार्इ ।।
18.
राग - हमीर ताल - धम्माल
अधर धर कैसी मधुर मुरली बजार्इ री सांवरे,
श्रवण सुन सुन भवन तज, वृज नार वन उठ
धार्इ री ।।
ए तन मन सावलिया छीन, अैसो पढ ़ कछु
मंत्र कीन,
तीन लोक मचार्इ धूम, बांस गांस जगार्इ
री ।।
आपने लौ लीन जोत , वाही के अधीन , प्रेम रस बस
वेणु के कुल लाज देत छुड़ार्इ री ।।
कुंवर श्याम को प्यारी लागे, जो सुने ताहि काम
जागे ,
कारण वदत न काहू चतुर, सुजान लाड ़
लड़ार्इ री ।।
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