1.
राग - शोरठ ताल - दादरा
निश दिन, कल न परत,
तर्फत दर्शन बिन नैना ।
चितवन मन लियो छीन, हंस हंस कहि कछु बैना ।
विरह सखी सहयो न जात, घरी पल रहयो न जात ।
कुंवर श्याम दर्शन बिन प्राण अब रहै ना ।।
2.
राग - अड़ाना कान्हरा ताल - त्रितंल
कल न परत एक पल देखे बिन सूरत तिहारी ।।
ए प्यारी मान न करिए, बार बार कर जोर जोर पैयां
परत,
अति अधीन तरफ तरफ बीती रैन सारी ।।
हा हा खात तोरी कुंवर श्याम,काहे मुख से न बोलत,नैन न खोलत।
हठ जिन करिए, जान दीजिए ऐसी कहा चूक हमारी ।।
3.
राग - हम्मीर ताल - झपताल
एक पलक, देख झलक, वा मनमोहन की,
मन तो गयो वीर, तनहू अब जात री
।।
निशदिन घरी पल छिन, कल्प सम बीतत है,
वा ही को ध्यान और कुछ न सुहात री ।।
वे जगतनाथ प्रभु, दासी मैं कंस की,
मिलन कैसे होय, बनत नहीं बात री
।।
अचरज नहीं, कुंवर श्याम गृह
आवे मम,
प्रेम के बस, राम शबरी फल खात
री ।।
4.
राग - विहाग ताल - झपताल
पलकैं न खोलूं, अलकैं न बांधू, हिय में पिया की
झलक, मन ललक रहो ।।
खोल री नैन टुक, सुन कान दे बैन
प्रकट, हि देख घट घट मैं
मल रही ।।
प्रकट बहि देख तो हिय में चल री बुलावें तोहि ठाड़े कुंवर श्याम,
तोरे विरह दोऊ दृगन नीर ढलक रहयो ।।
5.
राग - हमीर ताल - झपताल
द्वार पट ओट ठाड़ी तकत राह हरि, अबहूं न आए आवन
कहि गए प्रात ।
कबहूूं इधर देख, कबहूूं उधर देख, लोचन शिथिल भये, आस ही आस में
बीती सगरी रात ।।
भोर भए मन विमल दधि बेचन को चली, गैल में छैल कर
गहत हंस कहत बात ।।
जाओ जी जाआ,े छांडो जी
छांड़ो, ये ही प्यारी रीत
हम जानी,
कुंवर श्याम अब, काहूं को नौतत हो
जी काहू को जिमात ।।
6.
राग - शुक्ल बिलावत ताल - झपताल
दरस बिन मन बेकल, चैन नहीं इक पल, गयो चल करके छल ।
विरह के दल के दल लावत अनंग री ।।
जब से मधुबन रहे मदन मोहन सखि, नैनन झरना झरत, उठत तरंग री ।।
कुंवर श्याम जो भय कूबरी के लाडले, रैन दिन वाको अब
छूटत न संग री ।।
7.
राग - तिलक कामोद ताल -
तरसत दरसन बिन अंखियां ए री सजनी, एक घरी कल न परत,
निस दिन तरफ तरफ बीती रतियां ।।
हम से अवध कर कुंवर श्याम, कौन त्रिया घर
रैन रहे री,
रस लंपट, जाओ मिल गहि
ल्याओ सखियां ।।
8.
राग - परदेव की ताल-
तिताला या झपताल
लेख ना मिटत करम को री सजनी, हम सहैं जोग
संजोग कुबजा लहे ।।
राज ब्रज त्याग भए दास वा दासी के, लाज को बात
समुझाय जात को कहे ।।
टुनवा कियो कंवर श्याम पै चेरी ने, अपने वोह न आवे
ब्रज वाही के घर रहे ।।
9.
राग - सिंध काफी ताल -
तिहारे अति अनियारे नैन, अधिक रसीले लगन
लगावत, देखे बिन परत न
चैन ।।
झलक दिखाओ कुंवर कान्ह, कल न परत पर घरी, जात प्रान प्यारे
कैसे कटे दिन रैन ।।
10.
राग - छाया नट ताल - एकताल
दर्शन बिन घरी पल छिन, कल री न परत है
मोरी आली,
बसी नैनन सांवरी सूरत माधुरी मूरत ।।
हा हा खात और बिनती करत होैं जो कोर्इ आन
मिलावे प्रीतम,
कुंवर श्याम देखो निर्मोही, मेरी मन हर गयो
छलरी ।
11.
राग - केदारा ताल - तिताला
सांवरी सूरत मन बस गर्इ, नणद न हठ कर, जिन हठ कर, जिन हठ कर ।।
कल न परत, पल न टरत, चैन न परत बिन
देखे ।।
कुंंवर कान्ह कैसू करूं, कैसी करूं, मानत नाही है मन,
कैसी कुरूं जतन, अजहूं न आए मदन
मोहन घर ।।
12.
राग - शोरठ ताल - तिताला
ना जानूं टोना कैसो कीनो मोरी री इन, कल न परत रैन दिन
दर्शन बिन ।।
घरी घरी पल पल दुबरी भर्इ जात, अपने दुख विरह की
।।
मोसे कही किन बार बार, तोहै इतनी बरज
हारी, कुंवर श्याम से
नेहा कर जिन ।।
13.
राग विहाग ताल - तिताला
मन उरझाय गयो री, नैन से नैन मिला
के ।।
अरी मैं दधि बेचन जात सखी री, बंसी बजाय रहयो
री ।।
कुंवर श्याम कोर्इ बेगि मिलावो, बिरह जराय रहयो
री ।।
14.
राग - परज ताल - त्रिताल
डगर डगर नगर नगर भूली रे, फिरत हौं मेरी
आली,
बावरी कहत और कोर्इ न बतावत श्याम सुंदर नटखट
घर ।।
जुर जुर पूछत कहा काम है, कुंवर श्याम सो
क्यों न कहत तूं,
लाज की मारी कछु कह न सकत, सैन चला मन मेरी ले गयो
हर ।।
15.
राग - विहाग ताल - तिताला
जाने दे री पिया मिलन को मोहे आज,
आवे तेरे कहा कर मेरो कर अकाज ।।
कुंवर स्याम देखे बिन न रहूं, तोसे सांची सांची
कहौं एक न सुनूंगी,
कहा री हठीली करत रार, गारी देत बीच डगर
करत रार ।
16.
राग - पीलू बरूआ ताल - दादरा
विरह दुख न मोसे सहो जात री, सखी री जब से बसी
दृगन बीच सांवरी सूरत, माधूरी मूरत घरी
पल छिन जिय समात री ।।
विरह अगिन चमकत तनमन में जैसे दामिनि धन मैं,
अति व्याकुल जिय होत री सजनि, कुंवर स्याम बिन कछु न सुहात री
।।
17.
राग - हमीर ताल - तिताला
एक पलक दिखा के झलक, मोरो मन हर लीनो
स्याम नेक बंसिया बजाय के ।।
कुंवर श्याम बिन भवन न भावे, नींद न आवे, घरी घरी
पल पल छिन छिन, उन बिन निकसो
जिया अकुला के ।।
18.
राग - सोरठ ताल - त्रिताल
अंखियां तरसन हरि दर्शन को ।
ए सजना अब वेगि मिलावो, मैको कल न परत,
तरफत पल छिन, चाहत पग परसन को
।।
कुंवर श्याम सौतन परवस भए, पतियां न भेजी
अजहूं न आए,
अब कहो कैसे धीर रहे, झुक आर्इ बदरिया
बरसन को ।
19.
राग - पूरिया ताल - तिताला
एक घरी एक पल छिन लो निशदिन
मोहि हरी के दरश
बिन नाहीं चैन ।।
भवन न भावत, नींद न आवत,
धरक धरक छतियां करन लागी,
कुंवर स्याम ऐसो टोना सो कछु कीन,
बार बार हंस हंस दै सैन ।।
20.
राग - सिंध भैरवी ताल
देखों मैंको कल न परत प्यारे बिना ।।
सखी री, जब से गए मेरी
सुध हूं न लीनी,
चैनन रैन दिना ।।
कुबिजा सौत भर्इ कैसी, हमरी, लिख लिख भेजे जोग
पतियां री,
कुंवर श्याम हम से छुड़ाय बेगुना ।
21.
राग - बिहाग ताल -
प्यारे तोरी चितवन, कैसी मोहनी डारी
।।
रे बिहारी कल न परत, एक पल देखे बिन
मूरत तिहारी ।।
तरफ तरफ तुम बिन कुंवर कान्ह, सगरी रैन लागे
मदन बान,
निश दर्श गयो जिय तरफ, अब काहूं कहा री
।।
22.
राग - खमाच ताल -
तोरे दर्श देखे बिना, मोहे कल न परत, वेग छवि दिखावो
मदनमोहन ।।
रैैनन तरफ तरफ जागत, पलक न लागत ए,
कहा करिए कुंवर श्याम, तोरी जबसे बसी
बांकी चितवन
आंखिन फिरत हूं मैं मोहन ।।
23.
राग - विहाग ताल - एक ताल
सांवरी सूरत माधुरी मूरत, मेरी जब से ढीठ
परी,
पियारी कैसी करूं, परत न चैन दिन
रैन एक धरी ।।
श्रवण कुंडल चपल नैन, मोर मुकुट अलकें
झलकें,
भाल तिलक मन्द हसन, बांकी चितवन
कुंवर श्याम,
मेरो मन लियो चोर अरी ।।
24.
राग - हिंडोल ताल - झपताल
नित वृन्दावत गलिन भोर, एक ग्वालन आवत
दधि बेचन, कहां कहूं छवि
वाकी देख मन मोहन मोहत ।।
भ्रकुटि कमान नैन रतनारे वाके, बार घूंघट वारे,
पट तरन वाकी चित छोहन ।।
कहो कबहूं भेंट तुम तें हूं भयी मन्मथन,
चोर कहां भये जो वाको मन टोहत ।।
सुन मृदु वचन हंसि परे कुंवर श्याम, तेरी सौं प्यारे
हौ,
वाही की ठारो मग जोहत ।।
25.
राग - कान्हरा ताल - झपताल
ए सखी रैन दिन विरह की पीर में तन की न
सुध रही मन की न बुध रही ।।
नैन बरसत देख मधवा लजाओं हिय धरणि
तृपति भर्इ प्यास नहीं सुध नहीं ।।
कुंवर स्याम जब मधुवन को गमन कियो
मान में पड़ी रही मोसी बिबुध कहीं ।|
26.
राग - खम्माच धुन ताल - तिताला
सखी हरि बिन बरसन लागे नैन ।।
गरज सुन कंचुकी पट सूकत, नाहीं एक पल लोरी
कैसी झरी लागी दिन रैन ।।
कल ना परत , धरी पलक न लागत ,
कुंवर श्याम विन निश गर्इ जागत,
और मोसे झगरत मैन ।।
27.
राग - काफी ताल - झप
प्यारी दर्श बिन मेरो तरसे री, मैं कैसी करूं मेरी
आली ,
निश दिन कलना, परत तरफत जिया
चैन न परत ।।
ठाड़े कुंवर श्याम सखियन से, कहत है री कोर्इ
अैसी जावे ,
लावे उनहि मनाय हा हा खाऊं, पैआ लागूूं बांकि
चितवन किये,
बैठी राधा प्यारी देखत जिया डरत ।।
28.
राग - हमीर ताल -
आज घनश्याम की वेणु कहीं बाजत री।।
सुनत तान बंधा नासे एक पल, न परे कल विकल
होत मन ,
कंपत तन मैंन जिमि सैना दल साजत री ।।
अैसी मान भरी बाजत गरवीली, काहू समझत नाही ं
मोहन के अधर धरी, कर राजत री ।।
तन लियो मन लियो और कहा चहत अब,
बांस की पोरी बृजवास से हूं लाजत री ।।
कुंवर श्याम अैसी नीच मुख लार्इ लगाय,
जाके श्रवण परत, वाके सब यंत्र
मंत्र भागत री ।।
29.
राग - जोग कौंस ताल - तिताला
बिजुरी डरपावे ए सखि हरि बिन तरफ तरफ नींद न
आवे ।।
झींगरवा झिंगारत मोर करत शोर ,
कुंवर श्याम सखी भये अति कठोर अजहूं न आये वीर
करिये कहा कोर्इ उनहि मिलावे ।।
30.
राग - तिलंग खमाच ताल - तिताला
धरी धरी पल छिन परत न चैन मोहि,
मदन मोहन के दर्श बिन ।।
कुंवर श्याम कोर्इ आन मिलाओ,
अतिमन व्याकुल जैसे जल बिन मीन
तरफत दिन रैन ।।
31.
राग - भीम पलासी ताल - धम्माल
तरसत देखने को नैन भर भर आवत,
प्यारे बिन है कोर्इ वेग मिलावे उन ।।
रूस गए कहा हमसे री, मोहन आवत नाही ं,
हम ना कहे कछु कठिन बैन ।।
नित प्रति पनघट आवत, जात हंसत चलावत
नैन ,
कुंवर श्याम दर्श बिन देखे, कैसे कटे दिन रैन
।।
32.
राग - विहाग ताल- धम्माल
हमारे भाग तिहारे दर्शन पाये,
धन धरी धन दिन, धन पल दूर भये
दुख सारे ।।
आवो हमारे महल पधारो,
नैक निहारो निर्भय सकुच विसारे ।।
कहा विलभ रहे प्रीतम प्यारे,
रैन न आये राह तक हम हारे ।।
कुंवर श्याम अब न पै हो,
देही लाख जतन करो ना दुलारे ।।
33.
राग - जै जैवन्ती ताल - धम्माल
तरफत तरफत गर्इ रैन,
एक पलक नींद न आवै, पिय बिन झगरत मैन
।।
है कोर्इ आन मिलावे हरि को, देखे विन परत न
चैन ।।
जब से गये कोर्इ पतिआं न भेजी, ना कछु कही गये
बैन,
कुंवर श्याम की बाट तकत हम वहां कछु लैन न दैन
।।
34.
राग - मालकौंस ताल - तिताल
इन नैनन नहीं चैन रैन दिन,
पलक न लागे मिल विछुरत को योग ।।
है कोर्इ वैद जो दूर करे जन्म मरण को रोग ।।
पंडित नाहि जो सोध बतावै, योग वियोग को जोग
,
कुंवर श्याम विन भजन टरे ना, कम्र्म धम्र्म को
भोग ।।
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